Sunday, November 29, 2015

(५४) दोहरे मापदंड

यद्यपि एक आम आदमी भारत के कानूनों की बारीक़ जानकारी नहीं रखता फिर भी वह कदम-कदम पर दोहरे मापदंडों को अपनाए जाने का अनुभव करता है! उदाहरणार्थ--

वैसे तो समाचारपत्र एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभिन्न मुद्दों पर पोल खोल अभियान या स्टिंग ऑपरेशन चलाता रहता है फिर भी उसी अखबार या चैनल पर उन्हीं विषयों से सम्बंधित विज्ञापन या कार्यक्रम आदि रोज आते रहते हैं और 'उनकी' तह तक जाने या पोल खोलने के लिए अक्सर कोई प्रयास नहीं होता है! कुछ उदाहरण, जैसे- निर्मल बाबा / आशु भाई सरीखे बाबाओं के कार्यक्रम, या रत्न-कवच-लॉकेट से सम्बंधित विभिन्न अन्धविश्वासी विज्ञापन, अख़बारों में 'दोस्त' बनाने और 'मसाज पार्लरों' के भड़कीले विज्ञापन!

अश्लील (पोर्न) फिल्में बनाने और उनकी डीवीडी बेचने वालों के खिलाफ अक्सर छापे मारे जाते हैं, उनकी पोल खोली जाती है, उन्हें बंदी बनाया जाता है, उनके मुंह पर कालिख तक पोती जाती है; परन्तु वही सामग्री इन्टरनेट पर सरलता से उपलब्ध है! और उस पर तुर्रा यह कि उन पोर्न फिल्मों की एक्ट्रेस को यहाँ सम्मानित किया जाता है, उसे आम फिल्मों में भी काम मिलता है, एक 'सेलेब्रिटी' के तौर पर उसकी फोटो छपतीं हैं, उस पर लेख छपते हैं, उसकी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित होती हैं, उसके इन्टरव्यू आते हैं!

..समझने के लिए उपरोक्त दो उदाहरण ही पर्याप्त हैं, इनको नजर में रखते हुए आप बीसियों अन्य उदाहरण ढूंढ सकते हैं! सोचिए, ऐसा क्यों है अपने यहाँ? क्या यह सही? कानून क्या सिर्फ आम आदमी के लिए ही बना है? नैतिकता की अपेक्षा सिर्फ साधारण जन से ही क्यों? टैक्स हो या किसी सरकारी बिल का भुगतान, मात्र ईमानदार आदमी ही भुक्तभोगी क्यों? आज महंगाई, सरकारी घाटे आदि का मूल क्या एक साधारण आम आदमी, ..या कुछ भ्रष्टों या बड़ों द्वारा हर कदम पर की जा रही चोरियां (चूसना)?

लगभग हर क्षेत्र में 'कानून' केवल कुछ लोगों का गुलाम बन कर रह गया है! एक साधारण व्यक्ति के लिए वह 'धमकी' (threat) है और तिकड़मी या बड़े के लिए वह एक 'अनोखा अभयदान'! एक ही तरह अपराध पर प्रतिक्रिया के अलग-अलग मापदंड स्पष्ट दिखाई देते हैं!

आज हमारे 'अभिजात्यों' की नैतिकता भी केवल वैयक्तिक लोभ, प्रसिद्धि अथवा किसी दबाव में ही जागती है और मीडिया, अखबार, पुलिस, न्यायपालिका, राजनेता, फिल्म निर्माता, आदि भी इसी वर्ग में आते हैं! इति।