Friday, November 27, 2015

(५३) व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच राहुल की मेहनत और बेचारगी

कुछ समय पूर्व एक ब्लॉगर ने राहुल गाँधी के लिए बहुत सही फ़रमाया था कि, "वह दिन-रात कांग्रेस की गाडी को पटरी पर लाने के लिए और रिफोर्म के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं और दूसरी ओर वरिष्ठ कहे जाने वाले कांग्रेसी नेता कांग्रेस के लिए कब्र खोदने पर आमादा हैं।" इसके अतिरिक्त यह भी लिखा था कि, "कुछ साल पहले....शरद पंवार ने एक बयान दिया कि इस बार गन्ने की पैदावार कम हुई है, इसलिए शक्कर के दाम बढ सकते हैं। और उसी रात शक्कर व्यापारियों ने, जमाखोरों ने शक्कर के दाम बढा दिए। ...इस प्रकार बढती महंगाई का विपक्ष को फायदा मिलता है। ...68 सालों में गैर कांग्रेसी राज भी रहा है, भाजपा भी केन्द्रीय सत्ता में रह चुकी है, केंद्र और अनेक राज्यों में तो अभी भी है, लेकिन मंहगाई और भ्रष्टाचार रोकने के लिए किसने क्या किया है? ...दोनों ही केवल मुखौटे हैं या एक ही थैली के चट्टे-बट्टे, असल में सरकार चला रहे हैं अंबानी जैसे औद्योगिक लुटेरे ही।"

...इन्हीं या इनसे मिलते-जुलते मुद्दों पर मेरी सोच यह है कि, ..निश्चित रूप से राहुल गाँधी को हम 'अपरिपक्व बच्चा' कहकर नकार नहीं सकते! मुझे लगता है कि वह एक ऐसा नवयुवक है जो नई व ताजी सोच का है, सुधार की इच्छा रखता है, समझदार भी है, और पर्याप्त रूप से परिपक्व भी हो चुका है। ..परन्तु विडम्बना यह है कि उसे एक ऐसा परिवार, माता-पिता, मंच, साथी (पार्टी), आदि विरासत में मिले हैं जो वर्षों से लोगों की आस, साथ ही विवाद का केंद्र रहे हैं! सुर्ख़ियों में रहे परिवार व माहौल में जन्म लेकर किसी के लिए अपनी एक अलग पहचान बनाना इतना सरल नहीं होता है! ..और जानकार यह जानते ही होंगे कि सोनिया जी के दो बच्चों में से प्रियंका की तुलना में राहुल बचपन व किशोरावस्था में अनेक मायनों में कम परिपक्व थे! ..फिर भी राहुल ने मेहनत करके अपने मानसिक व बौद्धिक स्तर को सराहनीय रूप से ऊपर उठाया, अपनी सोच की स्वस्थता व सपनों की गुणवत्ता को संतुलित रूप से ढालने का लगातार प्रयत्न किया। ये बातें उनके आज के भाषणों व विचारों में परिलक्षित होती ही हैं। ..वो तो हमारी श्रद्धा किसी एक ही (अन्य) पार्टी की ओर होने के कारण हमें यह सब दिखाई नहीं देता, और अन्य दल का होने के नाते हम राहुल को केवल एक विपक्षी या प्रतिपक्षी समझकर मात्र उसकी अंधी आलोचना में लगे रहते हैं! ..जबकि हकीकत यह है कि राहुल ऐसा साहसी बेचारा है जो केवल संयोगवश या भाग्यवश मिली अपनी विवादास्पद विरासती जायदाद की मरम्मत में जोश से लगा हुआ है- पूरी आशा व ऊर्जा से। हम केवल इसलिए उसे नहीं नकार सकते कि वह एक विदेशी महिला का पुत्र है, बल्कि उसकी माँ को भी नकारना या भारतीय सांचे में ढलने के उसके प्रयासों को अनदेखा कर केवल उसे कोसना हमारी सोच की संकीर्णता को ही प्रदर्शित करता है! विपक्षी होने के नाते कभी-कभी हम अंधे होकर सामान्य मानवीयता को भी ताक पर रख देते हैं! हमें व्यक्ति, उसके कुटुंब, विरासत या संस्कृति की आलोचना न कर केवल उसके वर्तमान गलत  आचरण, कार्यों एवं दूषित सोच की आलोचना करनी चाहिए, वह भी अपने गिरहबान में झांकते हुए!

बुरी तरह से व्याप्त भ्रष्टाचार इस समय सबसे बड़ा मुद्दा है और राहुल का वैयक्तिक ध्यान इस ओर बखूबी है, इससे शायद किसी को इंकार न होगा यदि ईमानदारी से सोचना संभव हो सके तब! ...हाँ, इस बात से कतई इनकार नहीं कि कांग्रेस के अधिकांश नेता बुरी, बीमार और भ्रष्ट सोच के शिकार हैं! कमोवेश भाजपा का भी यही हाल है! ..और मीडिया भी इससे अछूता नहीं! महंगाई बढ़ाने में भ्रष्ट नेताओं के अतिरिक्त मीडिया का भी बहुत बड़ा हाथ है! शरद पंवार जी तो एक उदाहरण मात्र हैं, ..यहाँ अधिकांश सत्ताधारियों का यही हाल है चाहे वे किसी भी दल या विधानसभा आदि के हों! मुनाफाखोर व जमाखोर तो अब जैसे तैयार बैठे रहते हैं ..और किसी नेता या फिर मीडिया अथवा समाचारपत्र में किसी संवाददाता की रिपोर्ट आते ही खट से महंगाई बढ़ जाती है! बयानों व खबर मात्र से ही महंगाई बढ़ जाने की परंपरा इधर ४-५ वर्षों से ही देखने में आ रही है! ...व्यापारीवर्ग बहुत चतुर, मौकापरस्त व भ्रष्ट हो गया है अब! उदाहरण के लिए-- डीजल के दाम २ रुपए बढ़ने की संभावना होते ही पेपर में आशंकित व भयभीत करने वाली खबरें छपने लगती हैं और डीजल के दाम बढ़ने से पहले ही चीजें रातोंरात महंगी हो जाती हैं, वह भी बढ़ने वाले भाड़े की तुलना में कई गुना अधिक! ..थोड़ा सा सूखा पड़ते ही या थोड़ी अधिक बारिश होते ही या थोड़ी गर्मी या सर्दी अधिक होते ही आशंकित व भयभीत कर देने वाली मसालेदार खबरें छपने लगती हैं, ..और व्यापारीवर्ग की ओर से जनता पर महंगाई की एक और किश्त फिर से लाद जाती है! अनेक बार बेवजह (?) खबर छपती है कि टमाटर या प्याज का दाम फलानी-फलानी वजह से बढ़ने वाला है, और वो सब्जीवाला जिसने कम दाम पर ही माल उठाया है, अखबार पढ़कर तुरंत सब्जी का दाम बढ़ा देता है; आवश्यकता की चीज है तो लोग बढ़े दामों पर भी खरीदते ही रहते हैं, तो फिर थोक मंडी में भी रेट बढ़ जाता है! बिचौलिए, व्यापारी सब मालामाल हो जाते हैं और पिसती है तो बेचारी आम जनता! बाढ़ आना या सूखा पड़ना पहले भी होता था पर पर्याप्त जमा स्टॉक होने के कारण दामों में चमत्कारी रूप से परिवर्तन नहीं होता था पहले! ..अभी तो भण्डारण अत्याधुनिक हो चुका है फिर एकाएक ऐसा होना समझ में नहीं आता! समझ में अब केवल एक ही बात आती है कि स्वार्थ, मुनाफाखोरी, लालच आदि बढ़ गए हैं और निश्चित रूप से इस अनैतिक लाभ का हिस्सा प्रत्येक वह शख्स खाना चाहता है जो पैनिक फैलाता है! ..निश्चित रूप से उनमें उपरोक्त कथित सफ़ेदपोश हैं ही!

...अंत में थोड़ी सी बात और कर लेते हैं राहुल व राजनीति के बारे में! ..कांग्रेस में राहुल के अलावा नई व साहसी सोच रखने वाले साथी शायद दस से भी कम हैं इसीलिए राहुल को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है और इसीलिए नतीजे उस मेहनत की तुलना में बहुत कम आ रहे हैं! ..भाजपा का भी यही हाल है। कांग्रेस की तुलना में वह सत्तासुख कम भोग पाई है इसलिए बहुत भूखे से हैं उसके अधिकांश शूरवीर! दोनों पार्टियों में भ्रष्टाचार सिर चढ़कर बोल रहा है! अधिकांशतः कांग्रेस सत्ता में रही इसलिए वहां भ्रष्टाचार स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है परन्तु भाजपा को अभी ही अधिकार मिला है, फिर भी मानसिकता से सब जाहिर है! आम आदमी पार्टी अभी कुछ अलग सी लग रही है, सबकी तुलना में अधिक स्वस्थ; ..आगे रामजाने!

अफलातूनी सोच ही लगती है पर क्या ऐसा संभव नहीं हो सकता कि राहुल गाँधी और कुछ अन्य समर्पित कांग्रेसी नेता, नरेन्द्र मोदी एवं कुछ अन्य दमदार व नेक भाजपाई नेता, केजरीवाल और परिपक्व सोच वाले उनके कुछ अन्य साथी, .. एवं ऐसे ही कुछ और लोग इस देश की बेहतरी के लिए अपना निजी अहं, स्वार्थ एवं महत्वाकांक्षा त्यागकर एक साथ एक मंच पर आएं और ....!! इति।