Tuesday, December 8, 2015

(५७) मुफ्त में जाएं धार्मिक सैरसपाटे को!

१- कोई भी वह नतीजा जो हम अपनी मेहनत से निकालते हैं, कोई भी वह कार्य जिसमें हम अपना श्रम (तन, मन, धन) लगाते हैं; हम उसकी कद्र करते हैं, उसे सम्मान देते हैं, उसका मूल्य समझते हैं! लेकिन अनायास ही मुफ्त में मिले रहे तोहफे या सहायता की बहुधा हम कद्र नहीं करते। बहुत दिनों से भूखे, लालची, स्वार्थी, मुफ्तखोर, बाहुबली या दबंग लोग उनको बटोरने के लिए सबकुछ एक कर देते हैं, भारी हौचपौच व अव्यवस्था फैल जाती है; और जो वास्तविक (बहुत ही अल्प संख्या में) जरूरतमंद होते हैं वे पीछे खड़े रह जाते हैं या भगदड़ से खिन्न हो जाने के कारण घर से बाहर ही नहीं निकलते।

२- कोई भी वह कार्य जो आवश्यकता के मुताबिक सही समय पर होता है उससे हमारी आवश्यकता उचित समय पर पूरी होती है, और मन शांत रहता है। लेकिन जब बहुत सारे महत्वपूर्ण कार्य या मूलभूत जरूरतें समय पर पूर्ण नहीं होते तो उनकी कमी के कारण उद्विग्नता बढ़ती जाती है; और फिर यदि एक लम्बे अन्तराल के बाद वे समस्त कार्य एक साथ पूर्ण करने का प्रयास किया जाता है तो हौचपौच मच जाती है, बहुत सारी गलतियाँ होती हैं, गुणवत्ता में कमी आ जाती है या एक साथ निगलने के कारण बदहजमी होने का भी खतरा बन जाता है। और चीजों को लपकने के लिए बहुत से छुपे हुए लालची गीदड़, सियार, लोमड़-लोमड़ी भी आगे आ जाते हैं।

उत्तर प्रदेश की पिछली और वर्तमान सरकारों ने कन्याधन बांटा, बेरोजगारी भत्ता बांटा, मुफ्त मध्यावधि भोजन बांटा, मुफ्त लेपटॉप बांटा, महंगे पत्थर जड़ित बहुत सारी इमारतें, स्मारक, पार्क, चौराहे आदि एकाएक थोक में बनवा दिए; बहुत सारे विकास कार्य (?) एक साथ शुरू करवा दिए और आननफानन में उन्हें पूरा किया गया या किया जा रहा है। उन सबकी प्रासंगिकता, करने के समय, तरीके, गुणवत्ता, लाभ और फल आदि से सभी जागरूक पाठक परिचित होंगे ही! निम्न स्तर का निर्माणकार्य, निरंतर उखड़ती महंगी पत्थर-टाइलें, धंसते इंटरलॉकिंग टाइल्स पथ, थोड़ी बारिश से ही टूटती-धंसती नवनिर्मित सडकें, स्मारकों-इमारतों की अनुपयोगिता आदि किसी से छुपे नहीं है। इसी प्रकार की अदूरदर्शी सोच के चलते हाल ही में लखनऊ में बने आलमबाग व चारबाग के (बहुत महंगे किन्तु बेकार के, और अब मेट्रो लाइन के लिए बाधक) फुटओवर पैदल पुलों को तोड़ने की तैयारी; अब सड़क पार करने हेतु सस्ता किन्तु उपयोगी अंडरग्राउंड रास्ता बनाया जाएगा (भला हो मेट्रोमैन श्रीधरन जी का)!

...अब कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार का एक नया 'शिगूफा' जानने को मिला ही होगा कि प्रदेश के वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त में धार्मिक स्थलों की यात्राएं कराई जा रही हैं!! कितने धार्मिक हैं राजा और शासन; और तदनुसार ही कितने धार्मिक हैं हम (यानी बहुतायत); और कितने धार्मिक होंगे वे लोग जो इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए भगदड़, हौचपौच, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार फैलायेंगे?! चलिए माना कि यह सबकुछ नहीं होगा तो भी इस स्कीम की प्रासंगिकता या औचित्य (लेख के ऊपरी दो बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए) समझ में नहीं आता है! इति।