Saturday, May 22, 2010

(३३) धनी और निर्धन

  • जिसकी जितनी अधिक आवश्यकताएं शेष हैं, वह उतना ही अभावग्रस्त है, और उतना ही गरीब भी।
  • अभावों की निरंतर अनुभूति ही घोर निर्धनता का लक्षण है। यदाकदा अभाव महसूस करना मध्यम स्थिति है। और कामनारहित व्यक्ति या स्वयं को वास्तव में अभावहीन समझने वाला व्यक्ति धनी है, भले ही उसके पास फूटी कौड़ी भी न हो!
  • जो मन से धनी है अर्थात् संतोषी है, वह सुखी है, क्योंकि उसका मन शांत है। और मानसिक रूप से निर्धन अर्थात् अशांत तथा स्वयं को सदैव अभावग्रस्त समझने वाला व्यक्ति बहुधा दुःखी ही रहता है।
  • नित नवीन भोगों को प्राप्त करने की इच्छा, विलासिता के संसाधनों को जुटाने की अभिलाषा एवं येनकेनप्रकारेण संग्रह की वृत्ति वास्तव में मन की गरीबी ही है।
  • कामनापूर्ति से संभवतः सुख की प्राप्ति संभव नहीं क्योंकि कामनाओं का तो अंत नहीं। किसी एक बिंदु पर यथार्थतः संतोष कर लेने पर ही सुख का अनुभव होना आरंभ होता है।
  • जिसको अपनी वर्तमान स्थिति पर संतोष है, जिसकी अभिलाषाएं अनासक्त हैं, जो अन्यों के ऐश्वर्य की उन्नति के प्रति ईर्ष्यालु नहीं; वह सदैव शांत व सुखी रहता है।
  • जो व्यक्ति चकाचौंध, तड़क-भड़क, अनाप-शनाप अधिकाधिक खर्च और ऊपरी दिखावे को ही परम-आवश्यक, गौरवशाली व सुख का कारण मानता है, वह इन सब कृत्यों से कभी भी खरा सुख नहीं पा सकता।
  • जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को मानसिक स्तर पर भी न्यूनतम कर लेता है, व्यथित नहीं होता; वह ही सुख को समीप से अनुभूत कर पाता है।
  • संतोष सुख का जनक है और सुखी व्यक्ति ही धनी है। असंतोष तो दुःख को ही जन्म देता है, और दुःखी व्यक्ति अर्थात् निर्धन ही! जो सही मायनों में संतोषी है, उसको किसी भी वस्तु का अभाव कभी क्षुब्ध नहीं कर सकता; सामान्य सांसारिक दृष्टि से कदाचित निर्धन व अभावग्रस्त दिखने के बावजूद वह परम शक्ति, शांति एवं सुख का निरंतरता से अनुभव करता है।
  • मानसिक व आध्यात्मिक रूप से धनी व्यक्ति में ही मानवता पायी जाती है। मानवीयता का प्रकाश व्यक्ति को त्याग, कर्तव्यनिष्ठा व कर्तव्यपालन आदि के लिए उकसाता है, तब वह सांसारिक धन और अधिकार के प्रति आसक्ति को छोड़ त्याग एवं कर्तव्यपालन हेतु उद्यत होता है।
  • त्याग का अर्थ यह नहीं कि किसी वस्तु का एकदम से त्याग कर दिया जाये, वरन ऐसा हो जाये कि किसी प्रकार से उस वस्तु के प्रति हमारी आसक्ति शून्य हो जाये। वस्तु या उसके प्रति आसक्ति के त्याग के पश्चात् हमारे मन में यह कदापि न रहे कि हमने कोई बड़ा महान कार्य किया है! यदि ऐसी धारणा रहती है तो त्याग तो हुआ ही नहीं!
  • आसक्ति के त्याग और आवश्यकताओं के न्यूनतम होते ही अमीरी आ जाती है; परन्तु जिसकी आवश्यकताएं व आकांक्षाएं अनंत हैं उसकी गरीबी कभी नहीं मिटती, चाहे उसकी भौतिक स्थिति कितनी भी उन्नत क्यों न हो जाये! और जब तक गरीबी है, दुःख बना ही रहेगा!