हर साल, हर महीने, हर दिन, बल्कि हर घड़ी भारत में ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं जिनको देखकर उस पल यह लगता है कि 'बस अब कलियुग (भ्रष्ट समय) ने अपने चरम को छू लिया!' लेकिन फिर कुछ ऐसा प्रसंग घटित हो जाता है जो पहले वाले से भी अधिक भयावह प्रतीत होता है! भारतीय राजनीति के आंगन में ऐसा नित हो रहा है! चाहे वह कतिपय बड़े उद्योगपतियों को दिया गया वरदहस्त हो, या लम्बे समय से लटके फांसी के मामले, या राजनेताओं द्वारा कानून की कमजोरियों का लाभ उठाकर लिए गए हैरतअंगेज निर्णय, या विधानसभाओं या लोकसभा में नेताओं का पशुवत व नंगा व्यवहार!! ...शब्द कम पड़ जाते हैं!
कुछ समय पहले तक इन बातों का रोजाना उठना या इन पर खुल कर चर्चा करना तक असभ्यता का सूचक माना जाता था! लोग शर्म से गड़ जाते थे! पर अब तो हमारे जन प्रतिनिधि ही जब इतने एडवांस हो गए हैं तो मीडिया या जनसाधारण का क्या होगा? सोचकर सिहरन सी होती है। हमारे ही अभिजातवर्ग द्वारा भ्रष्टाचार व नंगई के नित नए कीर्तिमान स्थापित किये जा रहे हैं। रोजाना बुरी चीजों का पिछला रिकॉर्ड ध्वस्त हो रहा है। हमारे सरपरस्त बेशर्मी से हंस कर कहते हैं, 'चलो किसी फील्ड में तो हम तेजी से फर्स्ट रैंकिंग की ओर जा रहे हैं!
पहले चर्चा करने में भी झिझक होती थी अब तो पूरी फिल्में रोज देखने को मिल रही हैं! कहाँ जा रही है हमारी राजनीति? देश तो खोखला हो ही रहा है, डरता हूँ कि देखा-देखी कहीं आमजन की मानसिकता भी पूरी तरह से खोखली न हो जाए!? वैसे काफी अंतर तो आ ही चुका है उसमें! मानसिकता व भाषा के साथ ही हमारी शारीरिक भाषा भी रुग्ण होती जा रही है! फालतू का डर नहीं है यह, ..उत्तर प्रदेश की ही किसी ट्रेन के जनरल डिब्बे में, पान की दुकान पर, सरकारी कॉलेज के परिसर में, खाने के ढाबे पर, क्षेत्रीय लोकल ट्रेन / बस आदि में साधारण लोगों से बात करके देखिये या गौर से उनके परस्पर वार्तालाप को सुनिए, विश्वास हो जाएगा। यह सब हमारे बड़ों, हमारे अगुवों, हमारे आकाओं की ही देन है! इति।