Monday, August 6, 2018

(१०२) चर्चाएं ...भाग - 21

(१) क्या मौज, शौक और घूमना-फिरना, धन खर्च करना ही सुख है? सुख क्या है?
भौतिक जीवन के सुचारू सञ्चालन के लिए आवश्यक भौतिक सुख-सुविधाएं जुटाना, मौज-मस्ती, घूमना-फिरना, शौक पालना और उन्हें पूरा करना आदि कोई भी बात यदि व्यक्ति के भीतर विद्यमान आध्यात्मिकता को क्षति न पहुंचाए तो सब करना ठीक है, उत्तम है, सुख को आमंत्रण है! ...आध्यात्मिकता को क्षति न पहुँचाने से तात्पर्य है कि समानांतर रूप से हम अपने अच्छेपन (सामान्य नैतिक गुण), मन की शांति आदि को हमेशा बरकरार रख पाएं. ....यही संतुलन ही हमें सम्पूर्ण व 'स्थाई' सुख दे सकता है, ..हमारी स्वयं की और हमारे राष्ट्र की 'ठोस' भौतिक उन्नति करा सकता है! यह कोई कठिन काम तो नहीं?! इस आदर्श सुखावस्था में हमारी आध्यात्मिक प्रगति भी स्वतः ही निहित व निश्चित है, फिर उसके लिए अलग से कोई अनुष्ठान-साधना आदि करने की जरूरत नहीं! ...वस्तुतः "योगः कर्मसु कौशलम्" यही है. कुशलता एवं संतुलन के साथ किया गया 'प्रत्येक' कार्य हमारी सर्वांगीण प्रगति सुनिश्चित करता है, हमें सुखी, शांत और महान बनाकर स्वतः ही हमें ईश्वर से जोड़ता है!
वैसे तो सुख-दुःख की परिभाषा व्यक्तिगत है. व्यक्ति में इस क्षण उपस्थित ज्ञान-विवेक से ही उसकी परिभाषाएं बनती हैं. ज्ञान-विवेक आदि का कम होना कोई दुर्बलता नहीं, लेकिन एक लम्बे समय तक ठहराव यानी ज्ञान-यात्रा का रुके रहना यानी संतुलन का अभाव बने रहना, यह अवश्य ही दुर्बलता है!

(२) चुप्पी को कमजोरी क्यों माना जाता है?
मैं यह तो नहीं कहता कि व्यक्ति को सदैव वाचाल ही रहना चाहिए और किसी भी विषय या बेवकूफियों पर भी जवाब अवश्य देना चाहिए; परन्तु अनुभवों से यही जाना है कि 'बहुधा' चुप्पी, व्यक्ति की किसी न किसी अपनी कमजोरी के कारण ही जन्म लेती है! ..हीनभावना, दब्बूपन, निठल्लापन, अव्यवस्थित होना, अनियमितता, अनमयस्कता, अनमना स्वभाव (किसी कार्य, विषय या व्यक्ति के प्रति गंभीरता का अभाव), असुरक्षा की भावना, डर, अपराधबोध, पोलपट्टी खुल जाने का भय, आलस्य, ईर्ष्या, नफरत, अहंकार, सामने वाले को कुछ भी न समझना, और इन जैसे अनेकों स्वभावदोष हमारी चुप्पी का कारण हो सकते हैं.

(३) अहंकार को कैसे मिटाएं अपने अंदर से?
अक्सर अहंकारी व्यक्ति को यह मालुम ही नहीं होता कि उसके भीतर अहंकार है! लेकिन जब कोई ऐसा प्रश्न करे कि, "अहंकार को कैसे मिटाऊं", तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति को अपने स्वभावदोष पता चलने शुरू हो गए हैं और वह उन्हें कम (या समाप्त) करना चाहता है. यानी उसमें अब परिष्कार की प्रक्रिया शुरू होने को है. स्वभावदोष का पता चलना (उसका एहसास होना) उसके निर्मूलन की पहली शर्त है, वह पूरी हुई तो क्रिया अपनेआप आगे चलेगी!

(४) भगवान के पास भूत (अतीत) जमा हो जाता है, भविष्य भगवान के पास है?!
हम कर्मयोद्धा बने रहें, इस निमित्त आपके शब्दों में मामूली फेरबदल-- जो हम 'अतीत' में कर चुके, वो हो चुका, और सृष्टि के खाते में दर्ज हो चुका (वो हमारे हाथ में 'था' कभी)! जो हम 'अब' कर रहे हैं या 'भविष्य' में करेंगे, वह भी हमारे हाथ में है; ..बल्कि 'अब केवल वह ही' हमारे हाथ में 'है'! ..और उसके (हमारे कर्म के) फलस्वरूप आगे सृष्टि के नियमानुसार जो भी घटित होगा, उसके उत्तरदाई या कारण 'हम ही' होंगे! वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए आज तक के ज्ञात सभी नियम-सिद्धांत सृष्टि अथवा प्रकृति के ही हैं (जैसे न्यूटन द्वारा प्रतिपादित नियम)! वैज्ञानिकों ने ये नियम-सिद्धांत बनाये नहीं हैं, अपितु खोजे हैं! ये नियम-सिद्धांत सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड नहीं तो कम से कम इस पृथ्वी की तो प्रत्येक जीव-निर्जीव वस्तु पर लागू होते हैं! ..तो हम खुद को इस नियम-सिद्धांतों की परिधि से बाहर कैसे रख सकते हैं?! हम कोई 'एलियन' तो नहीं!

(५) भगवान हमारी हर गलतियों को माफ कर भी दें लेकिन हमसे जो कर्म हो चुका है, उसका क्या?? उसे कौन बदल सकता है? उसका फल तो अवश्य मिलता है!
हम अतीत में जो भी कर चुके, वो हमारे वश में था, लेकिन वो हो चुका! अभी हमारे हाथ में वर्तमान और भविष्य में किये जाने वाले कर्म शेष हैं, और उन पर हमारा सरासर वश है! शायद उनसे हम पुरानी क्षति-पूर्ति कर सकते हैं! ..किसी को गाली दे चुके तो अभी दिखावटी नहीं वरन 'हृदय से' माफी मांग सकते हैं, गले लगा सकते हैं; ..अतीत में पेड़ काट डाले तो अभी जागरूक होकर दोगुना वृक्षारोपण कर सकते हैं! ...अब जागृत हो कर ऐसे अनेकों प्रायश्चित्त और आत्म-परिष्कार हमारे वश में हैं. इससे हमारी गलतियाँ भुला तो नहीं दी जायेंगी, परन्तु उनका दुष्प्रभाव तो कम हो ही जायेगा. जैसे अपनी गलतियों से खोया सम्मान या आत्मसम्मान हमें सजा और अवसाद के गड्ढे में तो डालता है, पर फिर उनसे तौबा कर जब नेक काम हम शुरू करते हैं तो धीरे-धीरे हम कभी न कभी उबर भी सकते हैं. किस्से-कहानियों में ही नहीं, बल्कि हमें अपने आसपास भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल सकते हैं, यदि हम सूक्ष्मता से निरीक्षण-आंकलन कर पाएं तो!