Saturday, April 4, 2009

(७) सच्चे धार्मिक व अंधश्रद्ध कट्टर व्यक्ति में अंतर

सच्चे धार्मिक की सोच -- (संकेत चिन्ह -- +++)
अंधश्रद्ध कट्टर की सोच -- (संकेत चिन्ह -- ###)

(१)
+++ ईश्वर एक ही है, वह, जिसकी वह आराधना करता है व अन्य जातियों के ग्रंथों में दिए गए ईश्वर के अन्य रूप भी। सब एक ही हैं, मात्र नाम भिन्न हैं, शब्द भिन्न हैं।
### ईश्वर एक ही है और वह केवल वही है जिसका नाम उसकी जाति के ग्रन्थ-विशेष में लिखा है, जिसकी वह उपासना करता है। शेष जातियों के आराध्य झूठे हैं।

(२)
+++ अपने ज्ञान को कभी पूर्ण नहीं मानता, इसलिए अन्य ग्रंथों के प्रति भी जिज्ञासु रहता है।
### अपने ज्ञान को ही पूर्ण मानता है, इसलिए अन्य जातियों के ग्रंथों में कोई रूचि नहीं रखता।

(३)
+++ अपनी पद्धति से साधना करता है, पर दूसरे की साधना को निम्नकोटि का नहीं समझता।
### केवल अपनी पद्धति से साधना करता है और अन्य को शंका की दृष्टि देखता है व निम्न या झूठा समझता है।

(४)
+++ दूसरे को समझने व उससे सीखने की वृत्ति रखता है।
### मेरी उपासना-पद्धति ही सत्य है शेष सब मिथ्या, ऐसा विचार।

(५)
+++ अपने ज्ञान का प्रसार करता है।
### अपने ज्ञान का प्रचार करता है।

(६)
+++ दूसरे के ज्ञान का भी आदर करता है व उसके प्रति सदैव जिज्ञासु वृत्ति दिखाता है।
### दूसरे के ज्ञान को सदैव असत्य व झूठा कहता है, तो जिज्ञासा का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

(७)
+++ अपने ज्ञान में वृद्धि करने हेतु दूसरे समुदायों की धार्मिक सभाओं में भी सम्मिलित होता है।
### अपने समुदाय की धार्मिक सभा के अतिरिक्त अन्य कहीं भी जाना नहीं पसंद करता।

(८)
+++ दूसरे समुदायों की धार्मिक सभा में जब सम्मिलित होता है तो यथासंभव उन्हीं के तौर-तरीके प्रयोग करने का प्रयास करता है जिससे परस्पर प्रेम का निर्माण हो सके।
### दूसरों की धार्मिक सभा में जाता ही नहीं तो फिर शेष कृत्यों का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। हाँ प्रेम तभी दिखाता है जब कोई उसकी सभा में आये या उनके कहे अनुसार चले।

(९)
+++ लचीलापन रखता है। दूसरों से भी सीखने की वृत्ति।
### लचीलापन नहीं रखता। अतः दूसरों से सीखने की वृत्ति का अभाव।

(१०)
+++ अन्य जन-जातियों के साथ नम्रता निरपेक्ष होती है, प्रेम निरपेक्ष होता है।
### अन्यों के साथ नम्रता और प्रेम सापेक्ष (अपेक्षा पर आधारित) होता है।

(११)
+++ अन्यों की आलोचना कर सकता है, पर घृणा व द्वेष नहीं रखता। स्वयं में कट्टर हो सकता है पर अन्यों का विरोधी नहीं।
### अन्यों की आलोचना के साथ ही उनको निम्न भी समझता है, जिससे घृणा व द्वेष पनपता है। सदैव विरोधी वृत्ति रहती है।

(१२)
+++ अन्य जन-जातियों को कभी भी शंका की दृष्टि से नहीं देखता।
### अन्य जन-जातियों के प्रति सदैव शंकालु रहता है। काफी समय बाद शंका या शक कम होते हैं पर जाते नहीं जड़ से।

(१३)
+++ चूँकि दूसरी जातियों के साथ प्रेम निरपेक्ष होता है अतः वह प्रेम बहुत टिकाऊ होता है।
### अन्यों के साथ प्रेम सापेक्ष होता है अतः वह प्रेम टिकाऊ नहीं होता, मामूली प्रसंग से ही वह कम या समाप्त हो सकता है।

(१४)
+++ अधिकांश अंधविश्वासों को जानता व समझता है तथा उनसे चिढ़ता भी है, ... पर मात्र अंधविश्वासों से, अंधविश्वासियों से नहीं।
### स्वयं के कुछ अंधविश्वासों को भी विश्वास समझता है तथा अन्यों के कृत्यों को अन्धविश्वास घोषित करता है। समझे बिना बस घृणा करना ही जानता है।

(१५)
+++ अन्यों के अंधविश्वासों को विज्ञान, अध्यात्म व अन्य ठोस तर्कों से, व्यावहारिकता आदि से तोड़ने / हटाने का प्रयास करता है। आशय केवल यही होता है कि सभी बन्धु यथासंभव वास्तविकता में जिएं। इसके लिए वह 'विभिन्न' धार्मिक ग्रंथों की बातों का उल्लेख करता है यानी व्यापकता को अपनाता है।
### अन्यों के अंधविश्वासों को केवल अपने धार्मिक ग्रन्थ के सिद्धांतों के अनुसार तोड़ने / हटाने का प्रयास करता है। आशय होता है कि उसके ग्रन्थ से सभी परिचित हों व केवल उसी को मानें। यानी एक ज्ञान-विशेष को ही अपनाने का आग्रह होता है अर्थात् व्यापकता का बिल्कुल अभाव रहता है।

(१६)
+++ व्यापकता अपनाने से दूसरों में जल्दी घुल-मिल जाता है।
### व्यापकता का अभाव होने के कारण केवल अपने ही संप्रदाय तक सीमित रहता है।

(१७)
+++ व्यापकता अपनाने से सोच व खोज की सम्भावना असीमित होती है।
### व्यापकता के अभाव के कारण सोच व खोज बहुत सीमित रहती है।

(१८)
+++ व्यापकता के कारण हर प्रकार के ज्ञान में भी निरंतर वृद्धि होती है।
### व्यापकता का अभाव ज्ञान-प्राप्ति की प्रक्रिया को सीमित करता है।

(१९)
+++ ज्ञान के और व्यापकता के निरंतर विकसित होने से स्वयं में भी सरलता, हल्कापन और चैतन्य रहता है तथा दूसरों को भी उसकी संगति से अच्छे स्पंदन मिलते हैं।
### ज्ञान व व्यापकता की कमी के कारण स्वयं भी सहज नहीं रहता, भारीपन लिए रहता है, तथा दूसरों को भी उसकी संगति से विशेष अच्छे स्पंदन नहीं मिलते।

(२०)
+++ निज-स्वार्थ रहित परेच्छा से वर्तन करने की सदैव वृत्ति रखता है। अन्यों के विचारों का हृदय से आदर करता है व प्रत्येक से कुछ न कुछ सीखने का, ज्ञान पाने का अनवरत प्रयास करता रहता है।
### किसी भी दशा में परेच्छा से वर्तन नहीं करता। दूसरों का केवल बनावटी आदर करता है और सीखने से तो कोसों दूर रहता है क्योकि संकीर्णतावश अन्य सभी में उसे दुष्ट आत्माएं ही नज़र आती हैं।

.... इति।